*स्वरचित रचना*
*बदलती आवो हवा*
ए दोस्त जरा सम्हल कर बात करना
अब से बदल गई है देश की आबो हवा।
आतंकवाद को चाय पिलाया जाता है
और जो निष्पक्ष पत्रकारिता करते है उसे
जानबूझ के षड्यंत्र में फँसाया जाता है।।
अब जमाना बदल गया है जो देश हित
बात करे उसे हथकड़ी पहनाया जाता है।
अंग्रेजों के राज में तो सच को बोलने
पर धमकाते थे अब तो समय अलग है।
लोकतंत्र में घर में आ के डराया जाता है।।
पत्रकारिता अपने आप में एक जंग है।
देश के चंद हौसले बुलंद गुनहगारों से।
किसी विशेष क्षेत्र में नही समस्त भारत में
फैलते समस्त नाकारात्मक विचारों से।।
मिलकर जीत के लिए भागीदारी निभाये।
आओ ना साथ बढ़कर जिम्मेदारी निभाये।।
आज एक नही सम्पूर्ण अर्णव फँस
रहा है।
फिर से देश के चंद लालची हँस रहा है।।
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