मिट सके ना वो फ़साने
****************************
जिन्दगी के सफर के दिन वो पुराने,
वो मस्ती भरे दिनमिट न सके वो फ़साने।
इठलाती,बलखाती 'वो नदियाँ की धारा,
'वो मधुर स्वर में गाती थी सुन्दर तराना।
आमों की बगियों में वो सावन के झूले,
वो बहारों का मौसम,जिसे हम न भूले।
साखियों के संग मिलके,नदी में नहाना,
मीठे गीत गाते हुए, घर को आना।
होली दीवाली में साथ, खुशियाँ मनाना,
अब तो हुआ' ''वो'' पुराना जमाना।
कोयल,पपीहा और बुलबुल के वो गाने,
आज भी मेरे कानों में, मिश्री सी घोलें।
वो बागों में कच्ची,अमिया और इमली,
अद्भुत वो खट्टे स्वाद कभी भी न भूलें।
मचलती है यादों में, 'वो''सखी-सहेलियाँ,
जब से साथ छूटा वो छूटी अठखेलियाँ।
कितने प्यारे "वो" मस्ती के दिन गुजारे,
फिर आती नहीं, लौट के वो बहारे।
आज भी सावन में,वो लगती झड़ी है,
फिर भी लौट के आती नही,वो घड़ी है ।
अब तो लगते है, अपने जीवन भी वीराने,
'वो मस्ती भरे दिन, मिट न सके वो फ़साने।
******************************
स्वरचित एवम मौलिक
सर्वाधिकार सुरक्षित।
0 टिप्पणियाँ