राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय बदलाव मंच साप्ताहिक प्रतियोगिता
विषय : किसान
शीर्षक : कर्मयोगी
धरा की गोद में न जाने कितने
चैतन्य स्वरूपि हलधारी , वर्षा
शीतोष्ण के अलक्ष्य करते हुए
कनिष्ठ - वरिष्ठों के उदर पोषी रहे हैं।
बहती हुई स्वेद धारा में नहाते,
बीज एक - एक कर रोपते,
नई फसलें अंकुरित होते ही
नवोल्लास में नाच उठते हैं।
खेत, खलिहानों के उपज पर निर्भर,
उनका हांस - रुदन, समस्त जीवन,
वर्षा की कमी - बेशी के चर्चे में
बहुतेक अवलंबित उनके मन - मंथन।
राजकीय उलटफेर, युद्ध के कहर,
शेयर मार्केट के चढ़ाव - उतारों से
कोई लेन - देन नहीं, हल पर,
अपने बल पर विश्वास है ज़रूर ।
काव्य - पुराण, तत्व - अध्यात्म, तंत्रज्ञान पर
इनका ध्यान कभी नहीं ।
प्रधानी - राष्ट्रपति, नेता - अभिनेता.... ओं को
लगातार अन्न इनसे ही ।
कर्म योगी, अधनंगे संत, वे दैव सम,
निशि दिन काम, नहीं विराम, धरा ही धाम ।
अन्न प्रदानित मम हेतु वे ही राम - रहीम,
उन्हीं की ही भीख से हमारे धरम - करम ।
संसार में प्रत्येक वस्तु का है मूल्य,
पर उनके उपज का कहां है स्थिर मोल ?
योजनाएं बनती हैं, मगर इन तक नहीं पहुंचती,
पहुंचने तक इनकी उठी रहती है अर्थी ।
कर्ज में लद, देते देते सूद, हारे से रह जाते हैं,
वर्षा गर साथ दे तो अनाज - दाने देश को प्रदानते हैं,
गर हाथ दे तो कहे बिन चुपचाप चल बसते हैं,
नेतागण की झूठी अनुकंपा के शिकार बनते हैं ।
उन्हीं पर अवलंबित देश की स्थिति - गति,
"जय जवान - जय किसान" - ऐसे ही कही नहीं गई थी,
भोज वे, ताज वे, नाज़ वे,
उनके अस्तित्व में ही हमारी गति - मति,
हर हालत में वे हमें स्वीकृत - सम्मत, पहले हो उनकी उन्नति ।
रमेश बोंगाले बी.एन.
श्री मंजुनाथ निलय,
दूसरे पीपल पेड़ के सामने,
केंपन हल्ली मुख्य रास्ता,
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