कवि रमेश बोंगाले बी.एन. द्वारा 'किसान' विषय पर रचना

राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय बदलाव मंच साप्ताहिक प्रतियोगिता 

विषय : किसान 

शीर्षक : कर्मयोगी

धरा की गोद में न जाने कितने
चैतन्य स्वरूपि हलधारी , वर्षा 
शीतोष्ण के अलक्ष्य करते हुए
कनिष्ठ - वरिष्ठों के उदर पोषी रहे हैं।

बहती हुई स्वेद धारा में नहाते,
बीज एक - एक कर रोपते, 
नई फसलें अंकुरित होते ही
नवोल्लास में नाच उठते हैं।

खेत, खलिहानों के उपज पर निर्भर,
उनका हांस - रुदन, समस्त जीवन,
वर्षा की कमी - बेशी के चर्चे में 
बहुतेक अवलंबित उनके  मन - मंथन।

राजकीय उलटफेर, युद्ध के कहर,
शेयर मार्केट के चढ़ाव - उतारों से 
कोई लेन - देन नहीं,  हल पर,
अपने बल पर विश्वास है ज़रूर ।

काव्य - पुराण, तत्व - अध्यात्म, तंत्रज्ञान पर
इनका ध्यान कभी नहीं ।
प्रधानी - राष्ट्रपति, नेता - अभिनेता.... ओं को 
 लगातार अन्न इनसे ही ।

कर्म योगी, अधनंगे  संत, वे दैव सम,
निशि दिन काम, नहीं विराम, धरा ही धाम ।
अन्न प्रदानित मम हेतु वे ही  राम - रहीम,
उन्हीं की ही भीख से हमारे धरम - करम ।

संसार में प्रत्येक वस्तु का है मूल्य,
पर उनके  उपज का कहां है स्थिर मोल ?
योजनाएं बनती हैं, मगर इन तक नहीं पहुंचती,
पहुंचने तक इनकी उठी रहती है अर्थी ।

कर्ज में लद, देते देते सूद, हारे से रह जाते हैं,
वर्षा गर साथ दे तो अनाज - दाने देश को प्रदानते हैं, 
गर हाथ दे तो कहे बिन चुपचाप चल बसते हैं,
नेतागण की झूठी अनुकंपा के शिकार बनते हैं ।

उन्हीं पर अवलंबित देश की स्थिति - गति,
"जय जवान - जय किसान" - ऐसे ही  कही नहीं गई थी,
भोज वे, ताज वे, नाज़ वे,
उनके अस्तित्व में ही हमारी गति - मति,
हर हालत में वे हमें स्वीकृत - सम्मत, पहले हो उनकी उन्नति ।


रमेश बोंगाले बी.एन.
श्री मंजुनाथ निलय,
दूसरे पीपल पेड़ के सामने,
 केंपन हल्ली  मुख्य रास्ता,
चिक्कामागलूर

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