कवयित्री शोभा किरण द्वारा 'जीवन की बहुत सारी सच्चाइयाँ' विषय पर रचना

जीवन की बहुत सारी सच्चाइयाँ
जिसे समय से पहले समझ पाना
नामुमकिन सा  है।
एक अनदेखे, विषाणु ने,
सब कुछ समझा दिया।
भरी महफ़िल से सीधा,
तन्हाइयों में लाकर खड़ा कर दिया।
लगता है, एक उम्र बिताई है
मैंने इसे समझने के लिए।
एक सच ये भी है,
भावनायें हमें कमजोर कर देती हैं।
कुछ घटनाएं कमजोर बनाती हैं
कुछ चट्टान से मजबूत।
औऱ ये कश्मकश भरी जिंदगी
हमें भावनाओं के समंदर में धकेलती जाती हैं।
जज्बात लिखे जाते हैं,
लेकिन हर जज्बात के लिए
पर्याप्त शब्द कहाँ मिल पाते हैं।
ज़िन्दगी जख्मों को कुरेदती जाती है।
और जख्म नासूर बनते जाते हैं।
कुछ रिश्ते जिन्हें लगता था,
ख्वाबों की अर्थी को कंधा देंगे,
लेकिन ये भरम भी झूठा निकला,
हर रिश्ते की पोल,
एक बीमारी ने खोल दी,
जिन नातों पर गुमान था,
सारे नाते खोखले निकले,
हर रिश्ते से ज्यादा वफ़ा तो
कोरोना,एक वाइरस ने निभाई।
सारी उम्र,सारी जमा पूंजी
जिन पर लुटाई,वो पराये निकले,
पर कोरोना, एक जरा सी छुवन से,
सांसों में,रग रग में समा गया।
वाह री दुनिया,
वाह रे मेरे अपने,अब किसपर गुमां करूँ।
नम आंखों से सबकुछ साफ
नज़र आया।
जो इस पार था,वो उस पार नज़र आया।

शोभा किरण
जमशेदपुर
झारखंड

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ