मंच को नमन
शीर्षक गुरु नानक देव जयंती
15 अप्रैल 1469 में तलवंडी गांव था रावी का तट।
कार्तिक पूर्णिमा के दिन नानक खोले आंखों के पट।
पिता थे कालू मेहता तृप्ता देवी नाम था माता।
गुरु नानक देव का जन्म दिवस सभी को भाता।
पिता इन्हें पढ़ाकर बनाना चाहते थे संसारी।
चारों दिशाओं में भ्रमण किए यह छोड़ दुनियादारी।
छुआछूत अंधविश्वास से समाज था छिन्न भिन्न।
ईश्वरी निष्ठा अपनाकर बनाए सबको अभिन्न।
सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव बने।
निर्भय होकर आजीवन लोगों की सेवा में रहे सने।
आडंबर का विरोध हर प्राणी को माने वै परिवार।
सुलखनी देवी से इनका हुआ था विवाह संस्कार।
हमेशा सत्संग व आत्म चिंतन थे यह करते।
स्त्री पुरुष में समानता बताकर साहस थे भरते।
इनके बारे में अनेक किंबदंतियाँ है प्रचलित।
जिसे पढ़कर सभी लोग हो जाते हैं विस्मित।
पुत्र लखीचंद ,श्रीचंद व वारिश नामदेव कहलाये।
पूर्ण संतत्व प्राप्त कर जन सेवा ही थे ये अपनाये।
इनके आगमन को बीत गई पाँच शताब्दियाँ।
इनके प्रेरक प्रसंग शास्वत संदेश गूंजते वादियाँ।
1539 को यह सच्चा संत पंचतत्व में विलीन हुआ।
जिसने धरा से गगन तक ऊंचाइयों को था छुआ।
स्वरचित व मौलिक
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