कल्पना गुप्ता /रत्ना जी द्वारा अद्वितीय रचना#

वक्त की तपन  जिंदगी  को  तपाती रही
मोड़ हर  नए  पर  रास्ता  दिखाती  रही।

इम्तिहान से  जिंदगी  थी  मेरी  भरी‌  हुई
आग तपश बन शोले हर पल सताती रही।

मांग ना  सके वह मेरे  अश्कों का हिसाब
याद हर जख्म सीने में संभाल रखती रही।

हर  कदम  रखा  संभाल  के  मैंने  राह पे
चोट  किस्मतों   की  मुझको  नचाती रही।

भूल ना सके नश्तर जो उतारे गए थे सीने में
जो खुशी मिली मुझको, वह हिसाब मांगती रही।


कल्पना गुप्ता /रत्ना

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