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कविता
*आकाश*
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आकाश रूप मनभावन,
पिता समान बतलाया है।
हाथ जोड़ वंदन,अभिनन्दन
सबका सम्मान बढ़ाया है।।
संस्कारों का अनुपम संगम,
वेद शास्त्रों ने सिखलाया।
आकाश पिता,धरती माँ,
संस्कृतियों का पाठ पढ़ाया।।
जल रुप में अमृत बूंदें,
जब-जब धरा पर आती है।
मनमोहक आकाश छटा,
गीत खुशियों के गाती है।।
चाँद सूरज और तारे,
नयनाभिराम सितारे है।
आकाश मार्ग से ही तो,
देवगण पुष्प बरसाते है।।
सुन्दर सी अमूल्य धरोहर,
पार किसी ने नहीं पाया।
वसुंधरा आकाश ने मिल,
अपनेपन का धर्म निभाया।।
©®
रामबाबू शर्मा,राजस्थानी,दौसा(राज.)
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