स्वप्निल जैन जी, छिन्दवाड़ा द्वारा अद्वितीय रचना#बचपन से ढूंढ रहा हूँ#

बदलाव मंच को सादर नमन।

शीर्षक:- ***बचपन ढूंढ रहा हूँ***
दिनांक: 06/12/2020
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आज की चकाचौंध में एक मंजर ढूंढ रहा हूँ।
बीतती यौवन जवानी में अपना बचपन ढूंढ रहा हूँ।

गोते लगाता हूँ आज गहरे समंदर में
पर आज भी बारिश में कागज की कश्ती ढूंढ रहा हूँ।

खनकते हैं आज सिक्के जेब में,
पर आज भी मित्रों संग खेले वो कंचों की खनक ढूंढ रहा हूँ।

उड़ता हूँ आज पंछियों सा खुले आकाश में,
पर आज भी पतंग की वो ड़ोर ढूंढ रहा हूं।

बन गया हूँ आज बुद्धिशाली-विवेकवान मैं,
पर आज भी उस चंचल मन को ढूंढ रहा हूँ।

सह जाता हूँ आज बड़े-बड़े घाटे सौदे व्यापार में,
पर आज भी उस खिलोने के टूट जाने का दर्द ढूंढ रहा हूँ।

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स्वरचित मौलिक रचना:-
स्वप्निल जैन, छिन्दवाड़ा(मप्र)

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