डॉ सुनील कुमार परीट जी द्वारा अद्वितीय रचना#

बदलाव राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय साहित्यिक मंच
मंच को नमन
*।। जीवन और मृत्यु ।।* 

जीवन और मृत्यु जैसे नदी के दो तट हैं और इस भवसागर को पार करके हमें उस तब तक जाना ही है। अगर जीवन निश्चित है और मृत्यु तो उससे भी और निश्चित है। इस धरातल पर जितने भी सजीव नाम के प्राणी पक्षी जीव जंतु है सभी की मृत्यु निश्चित है। बस कोई आगे पीछे चलता है। जीवन में सुख समाधान से जीना हर कोई चाहता है अगर हम किसी को आपकी मृत्यु निश्चित है ऐसी बात हम उनके सामने कहेंगे तो वह निश्चित ही हम पर टूट पड़ेंगे। मृत्यु हम कहीं पर भी जाकर छुप जाए पर वह काल हमें नहीं छोड़ेगा। हम ऊपर वाले के हाथ के कठपुतलियां हैं वह जब चाहे हमें बुला ले सकता है। 

इस जीवन से हम जब मृत्यु तक जा पहुंचेगी तो क्या यह संसार हमें यहीं पर रखना चाहेगा? कतई नहीं चाहे वह राजा महाराजा हो या चाहे कोई भिकारी हो मृत्यु आने पर सबको जाना ही होगा। इस संसार में धूप हवा पानी कोई भी निश्चित नहीं है पर यह मृत्यु मात्र निश्चित है। मृत्यु के बाद हमारे साथ हमारे दोस्त हमारे परिवार वाले क्या हमारे चाहने वाले कोई नहीं आएंगे। मृत्यु के बाद हमसे सब कुछ छीन लिया जाता है। मृत्यु के बाद व्यक्ति का सिर्फ नाम शेष मात्र रह जाता है और वह नाम उसके कर्म पर निर्भर होता है। यह संसार अच्छे कर्म करने वालों को और बुरा कर्म करने वालों को भी कई साल याद रखती है। मात्र संसार की नजरिया अलग होती है।

किसी के दिल में जगह बनाना है तो अच्छा कर्म करना होगा। मृत्यु के बाद भी हमारे शरीर को छोड़िए पर हमारे नाम को तो यह संसार स्मरण करते रहना चाहिए। तो उसके लिए हमें अच्छे कर्म करते हुए लोगों से प्यार से रहना आवश्यक है। कर्महीन मनुष्य को यह संसार सिर्फ 3 दिन में भूल जाती है। 4 दिन की जिंदगी को हमें सुअवसर बनाकर कुछ अलौकिक कर्म करते हुए इस संसार को इस समाज को सुंदर बनाना चाहिए। इससे हमारा जीवन भी सुंदर बन जाता है और जीवन के बाद हमारी मृत्यु भी सुंदर हो सकती है। इस संसार में आकर निष्क्रिय रूप से 4 दिन की जिंदगी जी कर चले जाना यह कोई बड़ी बात नहीं है और ऐसी जिंदगी तो प्राणी पक्षियों सदा ही जीते आ रहे हैं। मनुष्य बुद्धिमान प्राणी है तो सबसे बेहतर जीवन विदा कर बेहतर मृत्यु पाना भी एक अलौकिक देन है। सत्कर्म करने वालों की राह वहां भगवान भी रखता है और यहां संसार सत्कर्म करने वालों को विदाई करना नहीं चाहती। जो सारी संसार को पसंद आता है वही भगवान को भी पसंद आता है। हमारी मृत्यु से पूरे इस संसार को दुख हो ऐसा जीवन ऐसे कर्म हमारे हो।

कबीर दास का एक दोहा यहां पर बहुत ही सांदर्भिक लगता है, जो हमारे जीवन और मृत्यु का मूल्यांकन करता है।
 *कबीरा जब हम पैदा हुए, जग हंसे और हम रोएं।* 
 *ऐसी करनी कर चलो, हम हंसे जग रोए ।।* 

डॉ सुनील कुमार परीट
बेलगांव कर्नाटक 


यह मेरी सुरक्षित एवं मौलिक रचना है। सर्वाधिकार सुरक्षित हैं।

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