माँ का आँचल#प्रकाश कुमार मधुबनी'चंदन' जी द्वारा#

स्वरचित रचना

एक लघुकथा

माँ का आँचल
एक बार की बात है जब बृजेश घर पहुँचा तो दरवाजे पर ही चिल्लाते हुए अंदर आया। माँ माँ कहाँ हो। माँ झट से अंदर से आवाज लगाते हुए अंदर आई की बृजेश तू आज आया है। आँखों से आँशु बह रहे थे क्योंकि बृजेश पढ़ने गया था किन्तु वही काम पकड़ लिया था वही रहता था।एक बार भी झाँकने नही आया था क्योंकि उसे शहर ही भाता था यही देख माँ हैरान थी कि की वह आज आ कैसे गया। माँ बोली बृजेश मैं सपना तो नही देख रही। तुझे मेरी याद अब आई है। बृजेश के आँखों में आँशु आ गए भला आता भी क्यों नही बगल के शकील अहमद ने कहा था कि बृजेश तुम्हारी माँ अब चंद पल की मेहमान है। ये सोच मानों बृजेश को उसका घर याद आ गया।खैर माँ बोली बृजेश
बैठ खड़ा क्यों है।बृजेश बोला माँ वो काजल भी आई है। माँ बोला क्या बहू भी आई है तो उसे अंदर बुला मैं दीये की थाली और कलश का लोटा लेकर आती हूँ। बृजेश सोच में पड़ गया कि जिस माँ को उसने अपने शादी में बुलाया नही था वही माँ आज बीमार होकर भी 
इतने फुर्ती से कैसे अपने बहू का स्वागत करने को बेताब है।तभी नीचे झुककर कोई महिला बोली प्रणाम माँ जी।अरे तुम अंदर आ गई बहू रुकती मैं अभी थाली और कलश लेकर आ रही थी ये लो कलश  इसमें अपने 
पैर मारकर अंदर आ जाओ अभी तेरी सास जिंदा है। सास के ये शब्द सुनकर बहू बोली माँ जी मुझे माफ़ कर दो मैं यही सोच आने से इनकार करती थी कि तुम मुझे स्वीकार करोगी भी या नही। माँ तुम्हारी तबियत खराब लग रही है तुम आराम करो बाकी सब मैं कर दूंगी माँ बोली अरे बहू ये माँ का आँचल है बेटा कितना भी गलती क्यों ना करें माँ का आँचल सदैव को सदैव अपने बच्चे का इंतजार रहता है ताकि वह अपने ममता के आंचल में उसे ढक सके।माँ हाँफते हुए बृजेश ने हाथ पकड़ा माँ तुम आराम करो अब आ गए है ना,अब तुम ठीक हो जाओगी।अब तुम आराम करो आज बृजेश को ऐसा लग रहा था कि वह क्या कर गया जबतक माँ रही कदर भी नही कर पाया।आज काजल भी चूल्हे पर खाना पका रही थी और घर भरा पूरा लग रहा था रात को खाना खाकर बृजेश ने माँ को दवाई खिलाया ओर पैर दबाते हुए माँ को कहा तुम आराम करो माँ मैं तेरे पास बैठता हूँ।माँ सो गई किन्तु सुबह जब सब जागे तो सबने माँ को जगाया किन्तु अब तो केवल बेजान शरीर था।आसपास के लोगों ने बृजेश के साथ मिलकर माँ का क्रियाकर्म कर दिया इन सबके बाद बृजेश बोला कि काजल मैं अब यही रहना चाहता हूँ ताकि पूर्वजों द्वारा बसाया यह आशियाना वीरान ना आ जाये ये सुन काजल बोली मैं भी यहीं चाहती हूँ कि हम यही रहे। आज बृजेश को सबकुछ अटपटा लग रहा था जैसे सब समान घर ऑंगन उससे नाराज हो कि जबतक माँ थी तबतक झाँकने भी नही आया और अब। बृजेश के आँखों में आँशु थे वह अपने किये पर शर्मिंदा था।दोनो ने सदा के लिए यही रहने लगे व यही पर अपना परिवार बसाया।

*प्रकाश कुमार मधुबनी'चंदन'*

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