जीवन की कटुता#प्रीति चौधरी "मनोरमा" द्वारा बेहतरीन रचना#कविता#

जीवन की कटुता

जीवन की कटुता में कोई
नित्य ही जैसे रस घोले।
नयनों की भाषा पढ़ लेता
भावों से उर- पट खोले।

हृदय नित्य बंध जाता है
उसके व्यक्तित्व सम्मोहन से
उर को जीत लिया उसने
आदरसूचक संबोधन से।
अनुरागी है मन मेरा
उसकी ही बातें करता है।
कैसे मन के लगाव को
शब्दों से कोई भी तोले।
जीवन की कटुता में कोई
नित्य ही जैसे रस घोले...

प्रेम सुगंध एहसास सा
रहता सदा ही मौन है।
जो प्रेम पाश से बच जाए
ऐसा इस जग में कौन है।
प्रेम अलकनंदा का जल
पावन पीयूष अमरत्व है।
इसकी पवित्र रस धार से
मन चाहे तन को अब धोले।
जीवन की  कटुता में कोई
नित्य ही जैसे रस घोले...

मन की गूढ़ भावना को
कागज पर सहज उतार दिया।
आस्था के सुर्ख प्रसूनों को
प्रियवर चरणों में वार दिया।
सुख-दुःख में साथ निभाने का
हुआ है मूक अनुबंध कोई।
बरसा है प्रीति का यह सावन
बिन गरजे और बिन बोले।
जीवन की कटुता में कोई
नित्य ही जैसे रस घोले...

दूर रहकर भी वो ही
मेरे अंतर में विराजमान।
उसके प्रेम के दीपों से
मेरे भू-अंबर दीप्तिमान।
मीत, सखा,साथी हमराही
मित्र वही है जीवन का।
प्रिय का अद्भुद रूप देख
अंतर्मन पवन बनकर डोले ।
जीवन की कटुता में कोई
नित्य ही जैसे रस घोले...

प्रीति चौधरी "मनोरमा"
जनपद बुलंदशहर
उत्तरप्रदेश
मौलिक एवं अप्रकाशित।

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